रूस और यूक्रेन, इंटरस्टेट वॉर
20 फरवरी 2022 को शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध को करीब-करीब तीन साल होने वाले हैं। 2024 के अंत में दोनों देशों के बीच जारी जंग कुछ धीमी पड़ती नजर आ रही है। इसे अमेरिकी चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत का नतीजा माना जा सकता है, लेकिन हालात बहुत सुधर गए ऐसा नहीं है। यूक्रेन ने अपने कब्जे वाले 54% क्षेत्र को फिर से हासिल कर लिया है। अब भी देश के 18% हिस्से पर रूस का कब्जा है। रूस ने यूक्रेनी शहरों पर बमबारी कर उसकी कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रिपोर्ट के मुताबिक वह जल्द ही यूक्रेन पर हाइपरसोनिक मिसाइल से हमला करने की योजना बना रहा है। दूसरी तरफ, यूक्रेन अब जंग के मैदान में सैनिकों से ज्यादा ड्रोन की मदद ले रहा है। उसने रूसी जहाजों और उसके बुनियादी ढांचे पर ड्रोन हमले बढ़ा दिए हैं।
जनवरी 2022 से अक्तूबर 2024 तक यूक्रेन को लगभग 278 बिलियन डॉलर की सहायता मिली। हालांकि, मदद करने वाले देशों ने भी अब हाथ खड़े करने शुरू कर दिए हैं। दोनों देशों के बीच जंग में 30,000 से अधिक नागरिक हताहत हुए हैं। 35 लाख से ज्यादा लोगों के घर तबाह हो गए। 60 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन से पलायन कर चुके हैं। डेढ़ करोड़ से भी अधिक लोगों को मानवीय सहायता की जरूरत है।
नए साल में सीज फायर की उम्मीद बढ़ी
रूस की संसद ड्यूमा ने साल 2025 के लिए 10 लाख 67 हजार करोड़ रुपए (126 बिलियन डॉलर) के डिफेंस बजट को मंजूरी दी है। यह कुल सरकारी खर्च का लगभग 32.5% है। CNN के मुताबिक यह रकम पिछले साल के डिफेंस बजट के मुकाबले 2 लाख 37 हजार करोड़ रुपए (28 बिलियन डॉलर) ज्यादा है। इस बीच खबर आई कि रूस को कमजोर करने के लिए यूक्रेन बड़े पैमाने पर ड्रोन हमले की तैयारी कर रहा है।
दूसरी तरफ यूक्रेन को लगातार पश्चिमी देशों से आर्थिक और सामरिक मदद हासिल हो रही है। जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने लगभग 5 हजार करोड़ रुपए (684 मिलियन डॉलर) के मिलिट्री इक्विपमेंट देने की घोषणा की है। ऐसे में जंग रुकने या जारी रहने की भविष्यवाणी कर पाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन नए साल में अमेरिका के राष्ट्रपति का पद संभालने जा रहे डॉनल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच जंग रुकवाने का ऐलान किया है। उम्मीद की जा रही है कि ट्रंप के दखल से युद्ध पर विराम लगे।
इस्राइल और फिलिस्तीन, इंटरस्टेट वॉर
हमास ने 7 अक्टूबर, 2023 को इस्राइल पर एक बड़ा हमला किया। इसने वर्षों से इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच चले आ रहे तनाव में चिंगारी का काम किया। हमले के जवाब में इस्राइली सेना ने भी गाजा पट्टी पर हवाई और जमीनी हमले शुरू कर दिए। हमास ने कई इस्राइली और विदेशी नागरिकों को बंधक बनाया और उनकी हत्या कर दी। कई लोग अभी भी लापता हैं। अक्टूबर 2023 से अब तक गाजा के लगभग 20 लाख लोग, जो कि वहां की कुल आबादी का 85% हैं, अपने घरों को छोड़कर जा चुके हैं।
हमास के अनुसार, गाजा में मारे जाने वालों की संख्या करीब 42,000 है। हालांकि, यह आंकड़ा कितना सही है यह कह पाना मुश्किल है। दोनों देशों के बीच जारी जंग से पूरा मिडिल ईस्ट प्रभावित हो रहा है।
लेबनान के हिजबुल्लाह संगठन ने भी इस्राइल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। जवाबी हमले में इस्राइल ने नसरल्लाह सहित हिजबुल्लाह के कई बड़े कमांडरों को ढेर कर दिया है। 2024 में इस्राइल को एक साथ सात मोर्चे पर जंग लड़ना पड़ रहा है। हमास और हिजबुल्लाह के अलावा, यमन में हूती विद्रोहियों और मिडिल ईस्ट में सीरिया, इराक और ईरान भी उसके खिलाफ हमलावर हैं।
इस्राइल पर हमले बंद करेगा हमास?
हमास के एक नेता ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों ने गाजा में युद्ध विराम के लिए हमास और इस्राइल के साथ बातचीत फिर से शुरू कर दी है। 14 महीने से जारी युद्ध को समाप्त करने के लिए समझौता होने की उम्मीद है। अमेरिका के अलावा भी कई देशों ने इस्राइल-हमास जंग को रोकने की वकालत की है। कतर ने इस्राइल और हमास के बीच युद्धविराम को लेकर बातचीत आगे नहीं बढ़ पाने से निराश होकर मिस्र और अमेरिका के मध्यस्थों के साथ वार्ता को नवंबर में निलंबित कर दिया था।
हालांकि, हमास के नेता बासेम नैम ने तुर्किये में बताया कि युद्ध को समाप्त करने, गाजा से बंधकों को रिहा करने और इस्राइल में फिलिस्तीनी कैदियों को मुक्त करने के प्रयासों को हाल के दिनों में दोबारा सक्रिय किया गया है। यानी, 2025 में उम्मीद की जा सकती है कि मिडल-ईस्ट में एक बड़े युद्ध पर विराम लगेगा।
सीरिया, सिविल वार
विद्रोहियों ने 10 दिन के जोरदार हमले में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन को समाप्त कर दिया। राष्ट्रपति को भागकर रूस में शरण लेनी पड़ी। इस हमले का नेतृत्व इस्लामिक आतंकवादी समूह हयात तहरीर अल-शाम (HTS) और तुर्की समर्थित सीरियन नैशनल आर्मी (SNA) कर रहे थे। 30 नवंबर को अलेप्पो पर कब्ज़ा करने के साथ एक भीषण युद्ध शुरू हुआ जिसमें 8 दिसंबर को विद्रोहियों को बड़ी जीत मिली।
इस उथल-पुथल ने सीरिया में असद परिवार के 50 साल से अधिक पुराने शासन और 2011 से चल रहे सीरियाई गृहयुद्ध को करीब-करीब समाप्त कर दिया। अलग-अलग मोर्चों पर जंग में शामिल रूस, ईरान और हिजबुल्लाह जैसे असद के पुराने समर्थक भी उसे विद्रोही हमले के दौरान मदद नहीं कर पाए।
2025 में कहीं फिर न एक्टिव हो जाए ISIS
अब देश पर विद्रोही गुट का कब्जा हो गया है। हालांकि, सीरिया में हालात अभी भी ठीक नहीं हैं। गोलीबारी और लूटपाट जारी है। लंबे समय तक वॉर में रहने के कारण देश की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है।
सीरिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग गुटों का कब्जा है। देश के एक हिस्से पर ISIS का भी दबदबा है। इसके भी एक्टिव होने की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में 2025 में भी हालात पूरी तरह सुधरने के आसार नज़र नहीं आते। इतनी उम्मीद जरूर की जा सकती है कि अफगानिस्तान की तरह ही, लेकिन एक मुकम्मल शासन बहाल हो।
चीन और ताइवान, इंटरस्टेट वॉर
चीन ने 2024 में ताइवान के पास बड़े पैमाने पर नेवी और एयरफोर्स की गतिविधियां बढ़ा दी हैं। ये गतिविधि चीन के ईस्ट कोस्ट और वेस्ट प्रशांत महासागर में सैकड़ों किलोमीटर तक चल रही हैं। चीन बीते कुछ समय से लगातार ताइवान पर हमलावर दिखा है। वह ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और बलपूर्वक कब्जे की बात कह चुका है।
ऐसे में दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ तो इसमें अमेरिका का कूदना साफ है। दरअसल, चीन दो करोड़ 30 लाख आबादी वाले स्वशासित ताइवान को अपना क्षेत्र मानता है और ताइवान के साथ अन्य देशों के औपचारिक संबंधों पर आपत्ति जताता है।
कई देश ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता नहीं देते, लेकिन अमेरिका अनौपचारिक तौर पर ताइवान का प्रमुख समर्थक है और इसे हथियार बेचता है। इसी बात को लेकर चीन खफा है। तनाव पिछले कुछ सालों से लगातार जारी है, हालांकि अभी तक कोई औपचारिक हमला दोनों देशों के बीच नहीं हुआ है। लेकिन, इससे इनकार नहीं कि दोनों देशों के बीच तनाव एक और युद्ध के जन्म लेने की चिंता को बढ़ा रही है।
प्रशांत क्षेत्र को अशांत न कर दे 2025
एक तरफ दुनिया के कई देशों में जंग जारी है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित मिडल-ईस्ट का क्षेत्र है। इस क्षेत्र के लगभग सभी देश जंग में परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। अब यह डर सताने लगा है कि 2025 में चीन ने ताइवान पर अपनी दावेदारी को लेकर कोई हिंसक रुख अपनाया तो प्रशांत क्षेत्र में बड़ा युद्ध शुरू हो सकता है।
ये सिर्फ दो देशों के बीच का युद्ध नहीं होगा, क्योंकि ताइवान के पीछे अमेरिका खड़ा है। ऐसे में दो सुपर पावर के टकराव से भारत और इस इलाके में सभी देशों के परेशानी होगी।
नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया, इंटरस्टेट वॉर
नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच तनाव वर्ल्ड वॉर II के समय से ही जारी है। कभी जापान के कब्जे में रहे ये दोनों देश दूसरे विश्व युद्ध के समय आजाद तो हुए लेकिन नॉर्थ कोरिया रूस और साउथ कोरिया अमेरिका के प्रभाव में आ गया। 50 के दशक में नॉर्थ कोरिया ने साउथ कोरिया के हिस्सों पर हमला भी किया और यह वॉर करीब 3 साल तक चला।
दोनों के बीच कोई स्थाई समझौता तो नहीं हुआ, लेकिन तब से स्टेटस-को कायम है। बीच-बीच में दोनों देशों की ओर से कुछ कार्रवाई दिखती है, लेकिन 2024 के अक्तूबर से हालात बिगड़े हैं।
नॉर्थ कोरिया ने साउथ कोरिया पर उसके एयरस्पेस का उल्लंघन कर राजधानी प्योंगयोंग में ड्रोन से पर्चियां गिराने का आरोप लगाया है। नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन की बहन किम यो-जोंग ने साउथ कोरिया को तबाह करने की धमकी दी है।
वहीं, विपक्ष पर नॉर्थ कोरिया को लेकर नरम रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए साउथ कोरिया के राष्ट्रपति ने देश में मार्शल लॉ लगा दिया। चौतरफा विरोध के बाद इसे हटाना पड़ा, लेकिन साउथ कोरिया के आंतरिक राजनीति में उथल-पुथल के हालात हैं। राष्ट्रपति यून सुक योल पर महाभियोग चलाने के लिए मतदान किया गया और उन्हें पद से निलंबित कर दिया गया।
जंग की बढ़ी आशंका
साउथ कोरिया में आंतरिक उथल-पुथल के बीच आने वाले साल में नॉर्थ कोरिया के साथ उसके टकराव की आशंका बढ़ने लगी है। साथ ही, साउथ कोरिया में आगे लोकतंत्र बने रहने को लेकर भी आशंका जताई जाने लगी है। 45 साल पहले लगे मार्शल लॉ के परिणाम देख चुके साउथ कोरिया के नेताओं ने इस बार समझदारी दिखाई, लेकिन 2025 में क्या होगा...यह सवाल मौजू हो चला है।
आखिरी बार इस देश में साल 1979 में मार्शल लॉ लगा था, जब सैन्य तानाशाह पार्क चुंग-ही की हत्या हुई थी। कई जानकार इसे नॉर्थ कोरिया की चाल भी बता रहे हैं, क्योंकि हर मामले पर जवाब देने वाले देश ने इस पूरे मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
आर्मीनिया और अजरबैजान, इंटरस्टेट वॉर
विवादित नागोर्नो-करबख (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच हिंसक जंग जारी है। इसे रूस-यूक्रेन या इस्राइल और हमास युद्ध जितना बड़ा तो नहीं कह सकते, लेकिन 2024 में भी दोनों देशों के बीच रुक-रुक कर हमले और मौत की खबरें आती रहीं।
बीते लगभग चार दशक से भी अधिक समय से मिडिल एशिया में आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच चल रहे क्षेत्रीय विवाद और जातीय संघर्ष ने नागोर्नो-करबाख क्षेत्र के आर्थिक-सामाजिक और राजनीतिक विकास को भी खासा प्रभावित किया है। इस जंग को समाप्त करने के कई देशों की मध्यस्थता कोशिशें बेकार रही हैं।
नया साल, नई शुरुआत की उम्मीद
2025 में दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने के हालात बन रहे हैं। पुख्ता तौर पर कुछ भी कह पाना मुश्किल है, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक अजरबैजान के आक्रामक हमले और नागोर्नो-काराबाख पर कब्जे के बाद, जो लोग अर्मीनिया चल गए थे, उन्हें दोबारा इस इलाके में बसाने की तैयारी चल रही है। इस इलाके में आर्थिक विकास का अज़रबैजान का वादा जितनी जल्दी हकीकत में बदलेगा, यहां शांति की उम्मीद भी उतनी ही तेजी से बढ़ेगी।
भारत और पाकिस्तान, बॉर्डर डिस्प्यूट (इंटरस्टेट वॉर)
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते 1947 में आजादी के बाद से ही तनावपूर्ण रहे हैं। आतंकवाद, बॉर्डर पर झड़प और राजनीतिक मतभेदों ने दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित किया है। 1948, 1965, 1971 और 1999 इन चार भीषण युद्ध के बावजूद भारत ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधाने की कोशिशें जारी रखीं। हालांकि, 90 के दशक से कश्मीर में लगातार आतंकी घुसपैठ, संसद पर हमला, मुंबई अटैक, पुलवामा हमले जैसे मुद्दों ने हालात और खराब कर दिए। जिस खेल (क्रिकेट) को दो देशों के बीच मेल का जरिया माना जाता था, वो भी अब तनाव में बदल गया है। 2024 में बॉर्डर पर दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात तो नहीं हैं, लेकिन तनाव कम हुआ ऐसा भी नहीं कहा जा सकता।
आतंकियों पर ऐक्शन से सुधर सकते हैं रिश्ते
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधार के दो ही रास्ते बचे हैं। पहला, आतंकियों को लेकर पाकिस्तान नरम रुख दिखाना बंद करे और भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करे। पुलवामा अटैक के बाद से भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने व्यापार को करीब-करीब शून्य पर ला दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में दोनों देशों में व्यापार लगभग नगण्य रहा।
भारत का आयात शून्य रहा, जबकि उसने पाकिस्तान को 235 मिलियन डॉलर का माल निर्यात किया, जिसमें मुख्य रूप से चीनी और फार्मास्यूटिकल्स प्रोडक्ट्स शामिल थे।
विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते केवल तभी सुधर सकते हैं, जब राजनीतिक तनाव कम हो। ऐसे में 2025 में यही उम्मीद की जा रही है कि पाकिस्तान अपनी गलतियों को सुधारे और भारत की ओर मैत्री हाथ बढ़ाए।
भारत और चीन, बॉर्डर डिस्प्यूट (इंटरस्टेट वॉर)
भारत और चीन के बीच बिगड़े हालात 2024 में बेहतर हुए हैं। दोनों देशों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 2020 से पहले की स्थिति को फिर से बहाल करने पर सहमत होना उनके संबंधों में सुधार की दिशा में एक अहम कदम है। 2017 में शुरू हुए डोकलाम विवाद और 2020 में गलवान की घटना के बाद से बढ़े तनाव के बीच दोनों देशों ने सीमा पर अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी थी। चीन ने पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील में अपनी गश्ती नौकाओं की तैनाती बढ़ाई थी।
ये इलाका लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के पास है। भारत ने भी बॉर्डर पर अपने फोर्स बढ़ा दिए थे, जिससे दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए थे। हालांकि, गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के नॉर्थ और साउथ छोर और गोगरा-गर्म झरना, देपसांग और डेमचोक से सेना की वापसी और 2020 से पहले गश्त लगाने समेत जो भी व्यवस्थाएं थीं, उसे फिर से बहाल करने पर सहमति से इस इलाके में शांति स्थापित होने की संभावना बढ़ी है।
नए साल में नई चुनौती
चीन के साथ भारत की मुश्किलें केवल सीमा तनाव तक सीमित नहीं है। विश्व में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत को यह भी देखना होगा कि अन्य मामलों, विशेष रूप से साउथ एशिया में चीन का व्यवहार कैसा रहता है। अभी तक चीन की नीति भारत को चारों तरफ से घेरने की रही है। कर्ज कूटनीति और अन्य उपायों से चीन हमारे पड़ोस में अपना प्रभाव बढ़ाने में लंबे समय से लगा हुआ है। साउथ एशिया के साथ-साथ वेस्ट एशिया में भी चीन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है और 2025 में भी इसके बने रहने की आशंका है।
ये 5 सबसे अशांत देश
रैंकदेश
GPI स्कोर
01
यमन
3.397
02
सूडान
3.327
03
दक्षिण सूडान
3.324
04
अफगानिस्तान
3.294
05
यूक्रेन
3.28
दक्षिण चीन सागर, ट्रेड रूट डिस्प्यूट
दक्षिण चीन सागर में चीन का शुरू से ही वियतनाम के साथ विवाद रहा है, लेकिन व्यापार का बड़ा रूट और इस इलाके में तेल-गैस के भंडार होने की खबरों के बाद इसमें दुनिया के कई देश शामिल हो गए हैं। एशिया मैरिटाइम ट्रांसपरेंसी इनिशिएटिव की एक रिपोर्ट के मुताबिक साउथ चाइना सी में वियतनाम ने सवा दो हजार एकड़ से ज्यादा हिस्से पर नकली द्वीप बना डाले हैं।
चीन के पास इसी इलाके में लगभग दोगुना बड़ा आइलैंड्स है। यही नहीं इस एरिया में आने वाले सभी देश अपना दावा मजबूत करने के लिए द्वीप बना रहे हैं। माना जाता है कि दुनिया में समुद्र को लेकर जितने भी विवाद हैं, उनमें साउथ चाइना सी सबसे आगे है। 2024 की बात करें तो QUAD ग्रुप ने (भारत-अमेरिका-जापान और ऑस्ट्रेलिया) इस एरिया में चीन के बढ़ते दबदबे को लेकर चिंता जताई है।
अमोरिका के विलमिंगटन, डेलावेयर में आयोजित क्वाड लीडर्स शिखर सम्मेलन में सभी ने एक सुर में ईस्ट और साउथ चीन सागर की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई और कहा कि हम विवादित विशेषताओं के सैन्यीकरण और दक्षिण चीन सागर में बलपूर्वक और डराने-धमकाने वाले युद्धाभ्यासों के बारे में अपनी गंभीर चिंता फिर से व्यक्त करते हैं। इससे साफ होता है कि इस एरिया में तनाव बरकरार है।
2025 में बढ़ सकता है विवाद
कई देशों से जुड़े होने के कारण ये दुनिया के कुछ सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक है, जहां से बड़े स्तर पर इंटरनैशनल बिजनेस होते हैं। यूनाइटेड नेशन्स कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट का अनुमान कहता है कि पूरी दुनिया के व्यापार का 21% केवल इसी रूट से होता है।
यह आंकड़ा 2016 का है। चीन इसके सबसे बड़े लगभग 90% हिस्से पर अपना क्लेम करता है। ये दावा नाइन-डैश लाइन मैप पर आधारित है, जो 1940 के दशक में एक चाइनीज जियोग्राफर यांग हुइरेन ने बनाया था। ऐसे में 2025 में इस क्षेत्र में विवाद और बढ़ने के आसार नज़र आ रहे हैं। चीन अपने दबदबे को बढ़ाने की कोशिश करेगा, वहीं क्वॉड देश इस ट्रेड रूट में किसी तरह के एकाधिकार को खारिज करते रहे हैं।
तकनीक का दखल, ड्रोन अटैक नई नीति
पिछले कुछ वर्षों में युद्धों में सबसे बड़ा बदलाव नई तकनीकों का रहा है। ड्रोन और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। 2018 और 2023 के बीच ड्रोन का उपयोग करने वाले देशों की संख्या 16 से बढ़कर 40 हो गई, जो 150% की बढ़ोतरी है। इसी अवधि में कम से कम एक ड्रोन हमला करने वाले अतिवादी गुटों की संख्या छह से बढ़कर 91 हो गई, जो 1,400% से अधिक का ग्रोथ है।
ड्रोन हमलों की संख्या में भी बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। 2023 में 4,957 ड्रोन हमले दर्ज किए गए, वहीं 2018 में यह संख्या सिर्फ 421 थी। दूसरी तरफ, दुश्मन देश को नुकसान पहुंचाने के लिए नॉर्थ कोरिया और मिडल ईस्ट के कई देशों ने डिजिटल आर्मी तैयार कर ली है। वे सरकारी बैंकों से लेकर संस्थानों तक में सेंध लगा रहे हैं। वेबसाइट हैक कर पैसे मांगे जा रहे हैं।
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